हमारा देश जहां महारानी लक्ष्मीबाई,महाराणा प्रताप,टीपू सुल्तान,भगतसिंह तथा चंद्रशेखर आज़ाद व इन जैसे हज़ारों देश भक्त सूरमाओं का देश कहा जाता है, वहीं जयचंद और मीर जाफर जैसे ग़द्दार भी हमारे देश की देन थे। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि समय के आगे बढऩे के साथ-साथ सच्चे देश भक्त जांबाज़ तो इतिहास के पन्नों तक में सिमट कर रह गए जबकि दूसरी ओर देश की राजनीति पर चारों ओर राष्ट्र विरोधियों लुटेरों, असमाजिक तत्वों तथा स्वार्थी व सत्ता लोलुप प्रवृति के लोगों का वर्चस्व हो गया। परिणामस्वरूप इन तथाकथित जि़म्मेदार सत्ताधीशों ने देश को दोनों हाथों से लूटने के लिए भ्रष्टाचार का ऐसा खुला खेल खेलना शुरू कर दिया कि इन्हें अपने काले धन को छुपाने के लिए दूसरे पश्चिमी देशों के उन बैंकों का सहारा लेना पड़ा जो उच्च कोटि की गोपनीयता बरतने में विश्व विख्यात हैं।
पिछले दिनों अमेरिका में आई भारी मंदी तथा आर्थिक संकट के बाद अमेरिका ने की इस बात की ज़रूरत महसूस की कि उच्च स्तरीय गोपनीयता बरतने वाले ऐसे कई देशों के बैंकों से उन अमेरिकी खातेदारों का भी हिसाब-किताब मांगा जाए जो अपना काला धन इन बैंकों में जमा करते हैं। उसी समय से भारत में भी ऐसी ही आवाज़ ज़ोर पकड़ती गई। अब उसी काले धन की वापसी के लिए भारत में इतने अधिक लोग अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं गोया सबके सब ईमानदार हों तथा यह जानते ही न हों कि काला धन किसे कहते हैं। और प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को साफ-सुथरा तथा हक व हलाल की कमाई करने वाला भारतीय प्रदर्शित करना चाह रहा है। इस शोर शराबे में मज़े की बात तो यह नज़र आ रही है कि सत्तारूढ़ यूपीए सरकार विशेष कर कांग्रेस के जि़म्मेदार नेताओं को काला धन वापसी के इन हिमायतियों द्वारा इस प्रकार कठघरे में खड़ा किया जा रहा है गोया कांगेस या यूपीए ही काला धन विदेशों में जमा करने की सबसे बड़ी दोषी हैं। और तो और काला धन का यह मुद्दा बाबा राम देव जैसे योग सिखाने वाले योग गुरूओं के लिए भी राजनीति में प्रवेश करने का एक मुख्य द्वार सा बन गया है। स्वाभिमान ट्रस्ट के नाम से बनाए गए अपने संगठन के बैनर तले रामदेव पहले तो आम लोगों को बीमारी से मुक्ति दिलाने हेतु योगा यास कराने की बात कहकर सुबह सवेरे चार या पांच बजे अपने निर्धारित शिविर में आमंत्रित करते हैं। उसके पश्चात योग सिखाने के दौरान या उसके बाद वे जनता से राजनैतिक मुद्दों को लेकर रूबरू हो जाते हैं। जनता व उनके मध्य संवाद का इस समय सबसे बड़ा मुद्दा विदेशों से काला धन मंगाना तथा राजनीति में भ्ररष्टाचार ही खासतौर पर होता है।
धार्मिक चोला पहन कर या स्वयं को धर्मगुरू बताने के बाद राजनीति में प्रवेश करने का हमारे देश में कोई अचछा परिणाम पहले नहीं देखा गया है। जय गुरूदेव तथा करपात्री जी भी हमारे देश में ऐसे धर्मगुरूओं के नाम हैं जिन्होंने राजनीति में क़दम रखकर कमाया तो कुछ नहीं हां गंवाया बहुत कुछ ज़रूर है। ऐसे में बाबा रामदेव उक्त धर्म गुरूओं से सबक लेना चाहेंगे या उनमें इनसे कहीं अधिक आत्म विश्वास भर चुका है यह तो उन्हीं को पता होगा। बहरहाल राजनीति में उनके पर्दापण की घोषणा के साथ ही उनकी फज़ीहत व आलोचना का दौर भी शुरू हो गया है। पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश में एक शिविर के दौरान उन्हें एक कांग्रेस सांसद ने ब्लडी इंडियन कह दिया। यह रामदेव का सार्वजनिक आरोप था । जबकि संासद ने इस आरोप से इंकार किया है। सोनिया गांधी को भी यूरोप व इटली निवासी बताकर रामदेव उन पर विदेशी होने जैसा खुला हमला बोल रहे हैं। जगह-जगह योगशिविर में पहुंचने वाले लाभार्थियों की भारी संख्या देखकर बाबा जी कभी तो इतना गद्गद हो जाते हैं कि उनके समझ में शायद यह भी नहीं आता कि वे जो कुछ भी बोल रहे हैं वह शिष्टाचार की परिधि में आता भी है या नहीं। जैसे गत् दिनों बिहार के बेतिया जि़ले के एक शिविर में बाबा रामदेव ने बड़े अहंकारपूर्ण ढंग से यह कहा कि राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री तो मेरे चरणों में आकर बैठते हैं तो आखिर मैं क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहूंगा। देश के लोगों ने तो कभी भी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को बाबा रामदेव के चरणों में बैठे नहीं देखा। परंतु बाबा जी ने अपनी शान स्वयं बढ़ाने के लिए ऐसा कहने में ज़रूर कोई हिचक महसूस नहीं की।
बहरहाल अब रामदेव व कांग्रेस पार्टी के एक सेनापति दिग्विजय सिंह उनसे दो-दो हाथ करने के लिए आमने-सामने आ चुके हैं। काले धन पर शोरशराबा करने वाले बाबा जी पर आक्रमण बोलते हुए दिग्विजय सिंह ने उनसे यह पूछा है कि आप भी इस बात का हिसाब दें कि आपके पास बारह वर्ष पूर्व तो महज़ एक साइकिल हुआ करती थी आज आप एक हवाई जहाज़ सहित हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक कैसे बन गए? इसके जवाब में बाबा जी ने वही कहा जो आमतौर पर सवालों के घेरे में आने के बाद दूसरे तमाम लोग कहा करते हैं। यानि यह पैसा मेरे अपने नाम पर नहीं बल्कि अमुक ट्रस्ट,संगठन,संस्था या संस्थान के नाम है। परंतु दिग्विजय सिंह की एक बात में ज़रूर पूरा दम नज़र आया कि बाबा जी को अपने भक्तों द्वारा दान में दी जाने वाली राशि को लेकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह रकम कहीं भ्रष्टाचार का पैसा या काला धन तो नहीं है। आमतौर पर देखा भी यही जाता है कि बाबा रामदेव जहां भी जाते हैं वहां का अधिकांशत: व्यापारी वर्ग ही उनके कार्यक्रम तथा स्वागत आदि का जि़म्मा संभालता है। अब यहां यह कहने की ज़रूरत नहीं कि इन स्वागतकर्ता व्यवसायियों में कितने लोग ऐसे होते हैं जो दाल में नमक के बराबर मुनाफा कमा कर अपना व्यवसाय चलाते हैं तथा सभी सरकारी कर नियमित रूप से ठीक प्रकार से देते हैं। । बाबा रामदेव से ही जुड़ी दिव्य फार्मेसी नामक वह संस्था भी है जो बाबा जी का अपना आयुर्वेदिक उद्योग है। यहां भी जो दवाईयां मिलती हैं उनका मूल्य बाज़ार में आमतौर पर मिलने वाली दवाईयों से कहीं अधिक महंगा होता है। इनके तो योग शिविर में प्रवेश करने तथा आगे-पीछे बैठने के भी अलग-अलग शुल्क निर्धारित किए जाते हैं। बताया जा रहा है कि इसी प्रकार रामदेव ने विदेशों में भी अपनी तमाम संपत्तियां बना ली हैं यहां तक कि कथित रूप से एक छोटा समुद्री द्वीप तक बाबा जी ने खरीद लिया है।
कांग्रेस बनाम बाबा रामदेव के मध्य काला धन मुद्दे को लेकर छिड़ी इस जंग में बंगारू लक्ष्मण,दिलीप सिंह जूदेव,येदूरप्पा जैसे नेताओं की पार्टी अर्थात् भारतीय जनता पार्टी रामदेव के पक्ष में उतर आई है। रामदेव अपने शिविर में 5-6 फीट के एक गद्दे पर बैठे एक-एक व्यक्ति की भीड़ को देखकर गदगद् हो उठते हैं तथा उन्हें शायद यह महसूस होने लगता है कि सभवत: सारा देश ही उनका अनुयायी बन चुका है। इसी तरह भाजपा भी इसी गलतफहमी की शिकार है कि वह रामदेव का साथ देकर उनके अनुयाईयों को समय आने पर अपने पक्ष में आसानी से हाईजैक कर लेगी। परंतु ज़मीनी हकीकत तो कुछ और ही है। भले ही स्वाभिमान ट्रस्ट,दिव्या फार्मेसी या पतंजलि योग पीठ जैसे संस्थानों के सक्रिय कार्यकर्ता व पदाधिकारीगण जगह-जगह उनके साथ क्यों न जुड़ रहे हों परंतु भीड़ के रूप में दिखाई देने वाले यह लोग दरअसल किसी योग शिविर में अपने इलाज व स्वास्थ्य लाभ के लिए ही जाते हैं न कि किसी प्रकार की राजनैतिक विचारधारा में बंधने की गरज़ से। वैसे भी जिस उम्र के लोग रामदेव के शिविर में आते हैं उस उम्र में आम लोगों की राजनैतिक सोच व दिशा पूरी तरह परिपक्व होती है तथा काला धन या भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से को लेकर उन्हें अपने वैचारिक मार्ग से डगमगाया नहीं जा सकता। इन सब के बावजूद भी यदि बाबा रामदेव राजनीति में प्रवेश करना चाह रहे हैं तथा उनका मकसद वास्तव में विदेशों में जमा काला धन की वापसी तथा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना है तो वास्तव में उनका स्वागत किया जाना चाहिए। परंतु इसके लिए रामदेव को अपने आसपास के लोगों,सलाहकारों,समर्थकों तथा पदाधिकारियों की भी स्पष्ट व निष्पक्ष स्कैनिंग करनी चाहिए कि कहीं उनके भक्तजनों में भी ऐसे लोग तो शामिल नहीं जो कि भ्रष्टाचार तथा काले धन के संग्रह को ही अपने जीवन की सबसे बड़ी सफलता मानते हों।
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